Tuesday, December 31, 2013

शैल : नया साल हो नई डगर हो

नया साल हो नई डगर हो 


नया  साल  हो  नई डगर हो
मंजिल नई  नया  सफ़र हो
चाहत  नई  , नये सपनें  हों
नई सुबह हो ,नया बसर हो

आगत  का  संदेश  नया हो
स्वागत  का संकेत नया हो
लिखना नव भाग्य देश का
नव  दर्पण  श्रृंगार  नया  हो

नये  हो मुल्ला नये नमाज़ी
नये  हों  पंडित नये पुजारी
मर्यादा  पर  आंच  न  आये
भाग्य बिके नहिं हाथ जुआरी

मेरा - तेरा   रिश्ता  क्या है ?
अपना  और पराया क्या है ?
ऐसे भाव  न रखना दिल में
इन सब से लेना-देना क्या है

भाल  भारती झुके नहीं अब
अश्रु  न हों माँ के आँचल में
कहीं न सूरज अलसा जाये
नील  गगन  के   आँचल में

भेदो, घन घमंड पश्चिम का
हटा-हटा पथ कंटक औ शूल
नहीं  रहे  मालिन्य  ह्रदय में
बनो आज शिव का  त्रिशूल

अपमान न होने पाए देश का
बन  विस्फोटक  हुंकार  भरो
नए  वर्ष  के  नव  स्वागत में
नव विधु का नव श्रृंगार करो


वक्ष  भेद कर शैल शिखर के
सुरसरिता  की   धार  बहाएँ  
लिए हाथ सुरभित पुष्पों को 
चलो आज  नव  वर्ष मनाएँ  

   शालिमा तबस्सुम "शैल"      





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